सुना है तुमने मुझे भुला दिया है। इतना आसान था तो मुझे भी बताती मैं भी पूरी कोशिश करता।

सुना है तुमने मुझे भुला दिया है। इतना आसान था तो मुझे भी बताती मैं भी पूरी कोशिश करता।

अच्छा ये बताओ शुरुआत कहाँ से की तुमने मुझे भुलाने की? ज़ाहिर है उस पहली मुलाकात से ही शुरुआत की होगी जब हम पहली बार आमने सामने हुए थे। तुम्हारे हाथ में एक छोटी सी डॉल थी और एक पिंक बैग जिसमे किताबें थीं स्कूल की।

आँखों में मोटे मोटे आँसू देख ऐसा लग रहा था कि किसी से स्कूल नहीं जेल भेज दिया हो तुम्हें। और मैं तुम्हें दरवाज़े के पास खड़ा देख रहा था और बहुत हँसी आ रही थी, लेकिन नहीं।

फिर तुम्हारा वो मेरे पास आकर कहना कि "तुमने भी घर पर बदमाशी की जो तुम्हें यहाँ लाया गया?" इस बात पर मेरी हँसी नहीं रुकी और मैं हँसने लगा।

ये बात तुम्हें शायद बुरी लग गयी और तुम रोते हुए क्लास के अंदर चली गयीं। तुम्हारी पेंसिल टूटने पर तुम और दुःखी हो गयी थीं, मानो सोने की अंगूठी से कोई हीरा निकल गया हो। मैंने तुम्हें पेंसिल दी थी और तुमने मुझे वापिस नहीं की है अभी तक।

ये बात भी शायद भूल गयी तुम।


धीरे धीरे हमारे बीच बात भी शुरू हुई; दोस्ती नहीं बचपना शुरू हुआ। वो साथ बैठना, साथ लंच करना, साथ घर तक का सफर तय करना। ये सब याद है कि नहीं?

हम बड़े हुए पर बातें अभी भी वही सब नादानियों वाली ही थीं हमारे बीच। सिक्स्थ क्लास की वो शरारत याद है कि नहीं जब तुमने मेरे शर्ट पर इंक लगा दी थी जिसके बाद मैंने तुमसे कई दिनों तक बात नहीं की थी? फिर तुम्हारे वो मोटे मोटे आँसुओं का सिलसिला चालू हो गया था जो उस इंक वाली शर्ट से भी ज़्यादा दुःखी करने वाला मंज़र था मेरे लिए।

तुम्हारा क्लास में फर्स्ट आना चलता रहा और मेरा पास होना भी। कभी कभी मुझे लगता कि ये मोटे मोटे आँसू दिखा कर ही फर्स्ट आयी हो, लेकिन नहीं। पढ़ने के वक़्त तुम्हारा वो "डू नाॅट डिस्टर्ब" वाला रूप याद है जिसे देख मेरी भी हालत ख़राब हो जाती थी।

और तुम्हारा मुझे छोटी छोटी गलती पर डाँटना भी अच्छा लगने लगा था। फिर ख़्याल आता था कि क्या ये वही मोटे आँसुओं वाली लड़की है जो स्कूल के पहले दिन आँखों में समंदर भर कर लायी थी?

वो ट्वेल्थ की पन्नों वाली क्लास जहाँ पढ़ाई कम और इश्क़ ज़्यादा पनपा था, मानो कुछ था जो हमारे बीच शुरू हो रहा था। वो तुम्हें देख कर आँखे नीचे कर लेना। क्या बेवकूफी थी वो? लड़की तुम थी और शर्म मुझे आ रही थी। तुम काफ़ी बदल भी चुकी थी और अब आँखों में मोटे मोटे आँसुओं की जगह मोटे से चश्में ने ले ली थी।

वैसे वो तो होना ही था। हमेशा फर्स्ट आने का कुछ तो इनाम मिलना ही चाहिए था। भगवान ने दो आँखे दी थीं और तुमने दो और लगा लीं। अब तो पढ़ाई भी दोगुनी रफ़्तार से हो रही थी लेकिन कुछ था जो शुरू हुआ था तुम्हारे दिल में भी। वो तुम्हारा बिना बात के ही कभी कभी मुस्कुराने लग जाना। मुझे देखना और तब तक देखते रहना जब तक क्लास की बैल या कोई और आवाज़ कान तक ना पहुँचे।

अभी भी सब वैसा ही था। खाना , घर जाना सब, लेकिन और कुछ था जो काफी हद तक अच्छा लग रहा था। मैंने भी सोचा एक बार इज़हार-ए-इश्क़ कर दूँ, क्या पता कुछ और अच्छा हो जाये। और तुम मान भी गयी थीं उसके बाद तो ऐसा लगा मानो कुछ और नहीं चाहिए।

लेकिन तुम्हारा वो उसके अगले ही दिन शहर से दूर जाना और एक अरसे तक ना आना, मानो बहुत कुछ बदल गया हो एक पल में। ये तो एक हद तक ठीक था पर बस ये खत इसलिए है कि क्या तुम सच में मुझे भूल गयीं? 

क्योंकि अभी भी ऐसा बहुत कुछ है जो रह रह कर मेरी रातों की नींद उड़ाने के लिए काफी होता है।

क्या तुम भी मुझे कभी कोई ख़त लिखोगी, नादानी भरा ही? जिसे पढ़ कर मेरे भी आँखों से वैसे ही मोटे मोटे आँसू निकलें जैसे तुम्हारे निकले थे?

Er. Ritesh Kumar Bhanu

Ritesh Kumar Bhanu is an India-based influencer, digital marketer, blogger, and founder of Tech Ritesh Insight. He started his journey in digital marketing and blogging at the young age of 16, learning various blogging strategies and tactics. Over time, he became a successful blogger and digital marketing expert.

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